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राज योग जो कम प्रचलित हैं
“लग्नाधिपति: केंद्रे बलपरिपूर्ण: करौती नृपतुल्यम
गोपाल$कुलपि जातम किम पुंरिह नृपतिसम्भूतम ”
अर्थ : बलवान होकर लग्न का स्वामी केन्द्र में हो तो राजयोग होता है.चाहे जातक का जन्म ग्वालिये के घर ही क्यों ना हुआ हो .
शफ्रीयुगले कर्कत्मारूदोह वाक्पतिशच धनुर्धरम
शुक्र:कुम्भे यदा शक्त्स्दा राजा भवेदिह
अर्थात :मीन का चंद्रमा ,कर्क का गुरु व कुंभ का शुक्र यदि कुंडली में विराजमान हो तो जातक को राजयोग का सुख मिलता है .
शशिसहिते केंद्रस्थे शनेश्चरे भवति जारजाततस्तु
राजा भुवि गजतुरंगग्राम धनैर्वध्रितश्रीक
अर्थात :चंद्रमा शनि कि युति यदि केन्द्र में हो तो जातक यदि माता पिता कि नैसर्गिक संतान ना भि हो तो धन गाड़ी सम्मान आदि के सुख को बढ़ाने वाला होता है.
जायते$भिजिति य: शुभकर्मा भुपतिर्भवति तो तुलवीर्य:
नीचवेश्मकुलजो$पि नरों$स्मिन राजयोग इति ना व्यप्देशे .
अर्थात :अभिजीत नक्षत्र में जन्मा जातक बलशाली राजा होता है.वह नीच कुल में भी जन्म ले तब भी इसमें कोइ संशय नहीं.
लग्न से या किसी भी स्थान से यदि समस्त ग्रह क्रम से बैठे हो अर्थात बीच में कोई भी भाव रिक्त ना हो .भले ही सारे ग्रह सात भावों में लगातार विराजमान हों तो ये एकावलि नामक राजयोग होता है.
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जय सियाराम
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